AKSHAR
- 21 Posts
- 196 Comments
जब मैं कोमल था
फूल की तरह
जब हवा का एक झोंका भी
मुझे आहत करने के लिए काफी था
उस समय
मेरी माँ का झीना सा आंचल
बन जाता था मेरे लिए अभेद कवच.
जब मैं रोग ग्रस्त हो
सो न पाता था रात भर
तब मेरी माँ की गोद
उसके मुख से निकली लोरी
हर लेती थी
मेरी समस्त पीड़ाओं को.
जब पिता की डांट
उदास करती थी मन को
तब मेरी माँ का
प्यार भरा स्पर्श पा
मैं चहक उठता था
जिसकी हर प्रार्थना
और कामना
घूमती थी मेरे इर्द-गिर्द
आज उसी माँ की
उदास निगाहें
पूछती हैं मुझसे
क्या मेरे इस जर्जर और
झुके हुए शरीर का
सहारा बन पाओगे
और मैं अपनी वृद्ध
परन्तु समर्थ माँ का
सार्थक सहारा बनने के
प्रयास में लग जाता हूँ.
Read Comments