AKSHAR
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जिंदगी की धूप में
छांव ढूँढ़ते हैं
दो घूंट पानी और
एक ठाँव ढूँढ़ते हैं.
रात-दिन की दौड़-धूप में
मिले पल भर का विश्राम
ऐसा कोई नगर नहीं
एक गाँव ढूँढ़ते हैं.
कहने को तो हवा है
मेरे शहर में भी
मगर भर ले भीतर तक
वो सांस ढूँढ़ते हैं.
फूल तो बहुत हैं
मेरे घर के आस-पास
देख उन्हें अधरों पर फ़ैल जाए
वो मुस्कान ढूँढ़ते हैं.
कहने को तो
सालों से जिए जा रहा हूँ
मगर बस हो अपनी
वो सांझ ढूँढ़ते हैं.
जिंदगी की धूप में
छांव ढूँढ़ते हैं
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