AKSHAR
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डॉक्टर साहब
आप भगवान हो
लेकिन आपका कृपाप्रसाद पाने को
हमें टटोलना पड़ता है
घर के हर कोने को
बच्चों के गुल्लक से लेकर
मंदिर तक
कितने ही मजबूर हैं
घर खेत यहाँ तक के मंगलसूत्र
बेचने को
आप मुझे अपने सामने
बैठाते हो
पर पता नहीं क्यों
समझ नहीं पाते मेरे हालात
कानों से लटकते आले को
मेरे दिल से लगाते तो हो
पर पता नहीं क्यों
समझ नहीं पाते
दिल का दर्द
मेरी आँखें तलाशती हैं
आपकी आखों में मेरे लिए संवेदना
पर आप एक मशीन की तरह
पुर्जा लिखने लगते हो
मैं उस पुर्जे को ऐसे देखता हूँ
जैसे सब पढ़ पाऊंगा
लेकिन तभी आप मुझे
बाहर का रास्ता दिखाते हो और कहते हो
नेक्स्ट
मैं शरीर से टूटा हुआ
मन से लाचार
जेब को टटोलते हुए
पुर्जे को थामे
घर की और चल पड़ता हूँ
ताकि
हो सके दवाइयों की व्यवस्था
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